मंगलवार, 28 अगस्त 2012


खूंटे से बंधी गाय  को देखा है कभी?
निःशब्द  निर्विरोध
करती रह्ती है भरण  पोषण ,
अपने बछड़ो का ही नहीं
दूसरों के बच्चों का भी,
भूखे पेट रह कर भी
लाठियां सह कर भी
नहीं करती प्रतिकार,
क्योंकि उसे मालूम है कि
उसका जन्म ही हुआ है 
 दूसरों के लिए,
कहलाती  है माता
पूजी जाती है यदा कदा ,
उपमाएं दी जाती हैं उसे 
देवतुल्य होने की ,
लेकिन जहाँ  दूध देना बंद करती है
तो छोड़ दिया जाता है उसे सडकों पर
 आवरा पशु की तरह।


सोमवार, 13 अगस्त 2012

दिमाग फैक्ट्री में ताला डाल दो

कभी कभी ऐसा लगता है की दिमाग विचारों की एक फैक्टरी  है जिसमें से हर रोज बेतहाशा हजारों विचार निकलते रहते हैं।बहुत कोशिश करती हूँ खुद को व्यस्त रख कर दिमाग के प्रोडक्शन  हाउस से होने वाली विचारों की इस अनलिमिटिड  सप्लाई को रोकने की लेकिन ये है कि  रूकती ही नहीं। और विचार भी ऐसे जो सिर्फ जाने के लिए नहीं आते , जाते-जाते मुझे इतना उलझा जाते  हैं कि  फिर किसी और काम में ध्यान केन्द्रित ही नहीं कर पाती ।
बड़ा ही हरफनमौला है ये दिमाग भी। कभी विश्लेषण करने बैठती  हूँ तो पाती हूँ कि  हर तरह का मसाला है इसके पास। भूत ,भविष्य और वर्तमान की चिंता, कुछ खो देने का डर ,सब कुछ होते  हुए भी असंतुष्टि का भाव,जीवन की क्ष णभ्रन्गुरता  का चिंतन , और भी न जाने क्या-क्या।सोचने पर विवश हो जाती हूँ कि जीवन में हर चीज़ का समाधान है लेकिन खुद अपने विचारों के चक्रव्यूह से जूझने का कोई हल नहीं है।
बाकि सब परेशानियाँ क्या कम थी जो इन्सान इन विचारों की रोलरकोस्टर राइड में अटक कर चकरघन्नी बनता रहे। सुबह उठने से लेकर रात को नींद आ जाने तक लगातार 24/7 का प्रोडक्शन हाउस है।
 आप डिमांड करते हैं और ये सैकिंड से भी कम समय में आपका आर्डर रेडी कर देता  है। कभी किसी हारे हुए खिलाडी की तरह नकारात्मक विचारों से डराता है तो कभी किसी बुद्धिजीवी प्रवचनकर्ता की तरह सकारात्मक विचारों से आपका  मनोबल बढाता है। कभी प्रेम के तो कभी नफरत के, कभी इर्ष्या  और कभी घबराहट के ,और भी न जाने कितने तरह के विचारों का पूरा स्टॉक है इसके पास। रा -मटेरियल के लिए ये  जीवन की छोटी-बड़ी, नयी-पुरानी  यादों का फुल स्टॉक कर के रखता है जिनसे विचारों का अनलिमिटिड प्रोडक्शन  होता रहे। और एक बार जब माल रेडी  हो जाये तो हजारों विचार बाहर आने के लिए क़तार में खड़े हो कर मचलने लगते हैं। बाहर आकर कुछ देर प्रश्नसूचक मुद्रा में खड़े होकर फिर कहीं खो जाते हैं। कभी-कभी तो बाहर आने के लिए वो आपस में इतने उलझ जाते हैं कि  लगता है  दिमाग में विचारों का घमासान युद्ध चल रहा हो। और ऐसे  में अगर भूले-भटके मुझे कोई ऐसा मिल जाता है जिससे मै  इन्हें बाँट सकूं तो भागते हुए ज़बान से ऐसे फिसलते हैं जैसे कह रहे हों पहले मैं पहले मैं। वाह रे दिमाग कुछ तो ऐसा देता जो किसी काम का होता ,देता है भी तो ऐसी चीज़ जो कोई लेना ही नहीं चाहता, फुल्ली -फालतू आइटम ।
सबसे कट कर इन विचारों से खेलना  बचपन से मेरा पसंदीदा शौक रहा है ,पर ये तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि  एक समय ऐसा भी आएगा कि ये विचार मुझ पर इतने हावी हो जायेंगे कि मैं इनसे छुटकारा पाने का उपाय सोचना  शुरू कर दूँगी।बिलकुल ऐसे ही जैसे कोई बिन बुलाया मेहमान आपके घर पर कब्ज़ा कर के बैठ  गया हो।अब तो बस जी चाहता  है कि इस दिमाग की फैक्टरी में कुछ दिन के लिए ताला डाल दूं और सुकून से रहूँ ।