गुरुवार, 8 अगस्त 2013

Ab Ke Baras Bhej Bhaiya Ko Babul Asha Bhosle Film Bandini Music SD Burma...

आज हरियाली तीज है। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है।  सुबह सोचा कि क्लास न लूं, लेकिन कुछ स्टूडेंट्स आ गए  तो मन न होते हुए भी क्लास ली। उसके बाद चाय का कप लेकर मैंने लैपटॉप पर अपना एक बहुत ही पसंदीदा गाना लगाया। बाबुल मोरा ……   नैहर छूटो ही जाये…. , जगजीत और चित्रा  की आवाज में ये गीत सुनकर जैसे दिल में एक दर्द सा उठा । ऐसा लगा कि  जैसे कोई पुराना जख्म ताजा हो गया हो। हरियाली तीज के मौके पर किसी लड़की को अपने मायके की  याद न आये ऐसा कैसे हो सकता है। ऐसे मौकों पर मैं अक्सर भावुक हो जाती हूँ। बहुत खूबसूरत बचपन था मेरा । बिलकुल किसी राजकुमारी जैसा । लेकिन फिर भी मैं अपने बचपन की यादों से अक्सर नज़रे चुराती हूँ क्योंकि मेरे बचपन की यादों में सबसे ज्यादा प्यारी याद  भैया की है, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं । तो ऐसे मौकों पर मेरा मूड कुछ ख़राब होना स्वाभविक है। फिर भी जीवन है ,जो चलता रहता है। मौकों और माहौल से यूँ भी मेरे मिजाज़ का तालमेल कम ही बैठता है। मौके ,मौसम, माहौल और मिजाज़ अक्सर कुछेक पुराने सुने हुए गीतों  की याद  दिलाते हैं । सावन के ऐसे ही गीतों में एक और बेहद खूबसूरत गाना है- "अब के बरस भेज भैया को बाबुल, सावन में लीजो बुलाय रे"। नूतन पर फिल्माया, बंदिनी फिल्म का गाना। जो मेरे चाचाजी हारमोनियम पर गाया करते थे। मैं कभी भी इस गाने को बिना रोए पूरा नहीं सुन पाई, "मैं तो बाबुल तेरे अंगना की चिरिया ,फिर क्यों हुई  मैं परायी"……… ।   किसी बेटी के दिल में उसके मायके की यादो को दर्शाने  के लिए इस गाने से सुन्दर और  कोई उदाहरण नहीं है। यूँ  तो मैं अक्सर अपने मायके चली जाती हूँ, लेकिन माँ-बाप से दूर रहकर उनके लिए कुछ न कर पाने की पीड़ा हर बेटी के दिल को सताती है ,जो समाज द्वारा निर्मित परम्पराओं की देन है। खैर जो भी हो , बाहर मौसम बहुत खूबसूरत  है और आज मिजाज़ भी अच्छा है, तो क्यों न हरियाली तीज के इस अवसर का पूरा -पूरा लुत्फ़ उठाया जाये। तो फिर चलिये , मेहरून बोर्डर की गहरे हरे रंग की साड़ी  पहन कर पतिदेव को सरप्राइज़ किया जाये। मेहँदी का भी प्रोग्राम है। और शाम को मम्मी के यहाँ जाना तो बनता ही है।

आज हरियाली तीज है। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है।  सुबह सोचा कि क्लास न लूं, लेकिन कुछ स्टूडेंट्स आ गए  तो मन न होते हुए भी क्लास ली। उसके बाद चाय का कप लेकर मैंने लैपटॉप पर अपना एक बहुत ही पसंदीदा गाना लगाया। बाबुल मोरा ……   नैहर छूटो ही जाये…. , जगजीत और चित्रा  की आवाज में ये गीत सुनकर जैसे दिल में एक दर्द सा उठा । ऐसा लगा कि  जैसे कोई पुराना जख्म ताजा हो गया हो। हरियाली तीज के मौके पर किसी लड़की को अपने मायके की  याद न आये ऐसा कैसे हो सकता है। ऐसे मौकों पर मैं अक्सर भावुक हो जाती हूँ। बहुत खूबसूरत बचपन था मेरा । बिलकुल किसी राजकुमारी जैसा । लेकिन फिर भी मैं अपने बचपन की यादों से अक्सर नज़रे चुराती हूँ क्योंकि मेरे बचपन की यादों में सबसे ज्यादा प्यारी याद  भैया की है, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं । तो ऐसे मौकों पर मेरा मूड कुछ ख़राब होना स्वाभविक है। फिर भी जीवन है ,जो चलता रहता है। मौकों और माहौल से यूँ भी मेरे मिजाज़ का तालमेल कम ही बैठता है। मौके ,मौसम, माहौल और मिजाज़ अक्सर कुछेक पुराने सुने हुए गीतों  की याद  दिलाते हैं । सावन के ऐसे ही गीतों में एक और बेहद खूबसूरत गाना है- "अब के बरस भेज भैया को बाबुल, सावन में लीजो बुलाय रे"। नूतन पर फिल्माया, बंदिनी फिल्म का गाना। जो मेरे चाचाजी हारमोनियम पर गाया करते थे। मैं कभी भी इस गाने को बिना रोए पूरा नहीं सुन पाई, "मैं तो बाबुल तेरे अंगना की चिरिया ,फिर क्यों हुई  मैं परायी"……… ।   किसी बेटी के दिल में उसके मायके की यादो को दर्शाने  के लिए इस गाने से सुन्दर और  कोई उदाहरण नहीं है। यूँ  तो मैं अक्सर अपने मायके चली जाती हूँ, लेकिन माँ-बाप से दूर रहकर उनके लिए कुछ न कर पाने की पीड़ा हर बेटी के दिल को सताती है ,जो समाज द्वारा निर्मित परम्पराओं की देन है। खैर जो भी हो , बाहर मौसम बहुत खूबसूरत  है और आज मिजाज़ भी अच्छा है, तो क्यों न हरियाली तीज के इस अवसर का पूरा -पूरा लुत्फ़ उठाया जाये। तो फिर चलिये , मेहरून बोर्डर की गहरे हरे रंग की साड़ी  पहन कर पतिदेव को सरप्राइज़ किया जाये। मेहँदी का भी प्रोग्राम है। और शाम को मम्मी के यहाँ जाना तो बनता ही है।