शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

मिर्ज़ा ग़ालिब की 216 वीं सालगिरह पर


Mirza Ghalib 212 Birthday

  1. "हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे ,कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयां औऱ !"

यूँ ही लोकल अख़बार के पन्ने पलटते हुए पढ़ा कि मेरे घर के पीछे की गली में स्थित ग़ालिब की हवेली यानि इंद्रभान गर्ल्स इंटर कॉलेज में मिर्ज़ा ग़ालिब की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। और फिर पता चला कि चचा तो अपने पडोसी निकले। हमारी नज़रों में उनसे बढ़  कर कोई लिखने वाला नहीं और हमसे बढ़ कर कोई पढ़ने वाला नहीं। मैं लगभग उछल पड़ी ,मिर्ज़ा ग़ालिब मेरे पीछे कि गली में? और मैं दुनियाभर कि किताबों में उनको ढूंढ़ती फिर रही थी । कॉलेज के ज़माने में कैसेटों और किताबों में ,और अब पूरा गूगल छान मारा है कि मरने से पहले ग़ालिब कि कोई भी नज़्म बिना पढ़े न रह जाये। वो ठहरे शायरी के देवता और हम पुजारी।  हार्डकोर फेन कसम से। 
   तो थोडा बहुत रिसर्च करने पर पता चला कि इनका मूल निवास आगरा ही था , मेरा घर यानि कि बेलनगंज के पीछे एक पुराना मोहल्ला है- काला महल ,वहीँ पर एक मकान  हुआ करता था जो अब एक कन्या विद्यालय में बदल दिया गया है। तो मियां मिर्ज़ा ग़ालिब यानि नज़्म-उद -दुल्लाह मिर्ज़ा असदुल्लाह बैग़ खां का जन्म इसी हवेली में हुआ था। उनका जीवनकल 27 दिसम्बर 1797 से 15 फ़रवरी 1869  तक रहा। ये वो वक़्त था जब मुगलों का शासनकाल अपने पतन पर था और ब्रिटिशों ने हिंदुस्तान में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी। जब वे ५ वर्ष के थे तो उनके पिता अलवर के युद्ध में मारे गए थे। उनका पालन-पोषण उनके चचा मिर्ज़ा नसरुल्लाह बैग खां ने किया था। उन्होंने ११ वर्ष कि उम्र में लिखना शुरू किया। १३ साल कि उम्र में उनका निकाह उमराव  बेगम से हुआ था। जिनसे उनके सात संताने हुई लेकिन दुर्भाग्यवश एक भी जीवित नहीं बची।  
उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सी ग़ज़लें ऑर नज़में  लिखी जिन्हें बहुत से अलग -अलग लोगो ने अलग-अलग अंदाज में प्रस्तुत किया। मुग़ल दरबार में वे अपनी शायरी के लिए मशहूर थे। ग़ालिब को न केवल भारत और पाकिस्तान में बल्कि दुनिया के बहुत से उर्दू पढ़े जाने  वाले मुल्कों में उर्दू का सर्वोच्च शायर माना  जाता है। उनकी शायरी ज्यादातर जिंदगी के रंजोग़म  का आईना थीं , लेकिन उनमें  प्रेम, अध्यात्म और दर्शन का भी मिला जुला रूप देखने को मिलता है। वे उर्दू, फ़ारसी और तुर्की भाषाओँ पर सामान अधिकार रखते थे लेकिन उनकी रचनाएं सिर्फ उर्दू में ही देखने को मिलती हैं। ग़ालिब को उर्दू का पहला दानीश्वर शायर कहा जाता है। दीवान-ए -ग़ालिब  को आज भी उर्दू शायरी में एक खास स्थान प्राप्त है।  
Mirza Ghalib Picture
Mirza Ghalib







सोमवार, 9 दिसंबर 2013

ये पता नहीं मौसम का असर होता है या आपके अपने  ही दिमाग में होने वाले साइकोलॉजिकल प्लस बाईलॉजिकल चेंजस  का असर , जिससे आपकी दिनचर्या प्रभावित होती रहती है। कभी बहुत नींद आती है बेहिसाब, इतनी कि रात में पूरी नींद ले लेने के बावजूद भी दिन भर सोये रहने का मन करता है | और कभी ऐसा भी होता है की नींद आपसे कोसो दूर भाग जाती है । ऐसा लगता है कि सुबह जल्दी उठ कर अपने सारे काम निपटा लिया जायें । सोना तो जैसे टाइम की बर्बादी लगता है। कभी सबसे बात करने का दिल करता है और कभी किसी से भी नहीं। और कभी -कभी तो ऐसा लगता है जैसे आप एक ऐसे शहर में हैं जहाँ कोई और जबान बोली जाती है। आप किसी से बात करेंगे तब भी कोई आप  की बात नहीं समझ नहीं पाएगा। ये एकाकीपन क्या मेरे ही साथ होता है या सभी इसका अनुभव करते हैं। समझ नहीं आता कि क्या है ये खालीपन सा जो भीड़ में जाने के बाद और बढ़ जाता है। 

ख्वाहिशों का राशिफल

वक़्त के साथ-साथ इंसान का जीवन के प्रति नजरिया भी बदलता रहता है। इंसान की उम्र और उसका अनुभव उसकी सोच पर निश्चित रूप से असर दिखाता है। उदाहरण के लिए जब हम टीनएज  या यंगस्टर होते हैं तो अपने डेली होरोस्कोप में लव और रोमांस वाले सेक्शन को सबसे पहले पढ़ते हैं और उसे ही जानने को सबसे ज्यादा उत्सुक रहते हैं। उसके बाद थोड़ा  परिपक्व होने पर वैवाहिक जीवन और कॅरिअर सम्बन्धी सेक्शन पर ध्यान देने लगते हैं। थोड़ी और उम्र बढ़ने पर हम बच्चे ,घर, सामाजिक  और सांसारिक कार्यकलापों से जुड़े सेक्शन को टटोलने लगते हैं। देखतें हैं कि समाज के दृष्टिकोण से सफल  कहलाने के लिए जो भी चीज़ें जरूरी है वो हमें मिलेंगी या नहीं? जैसे जीवन की उपलब्धियां, घर में सुख-शांति ,यश-सम्मान, सांसारिक वस्तुएं आदि। हमारी उम्र के साथ-साथ हमारी खुशियों और सफलता के पैमाने भी बदले रहते हैं। जीवन निश्चित रूप से परिवर्तनशील है और हमारी विचारधारा भी। या तो यूँ कहिये कि इस प्रगतिशील जीवन में हम जो पा लेते हैं उसके बारे में सोचना छोड़ देते हैं। और जो हमें पाना है उसके बारे में सोचते रहते है। उम्र के अंतिम पड़ाव तक हम कुछ न कुछ पाने को बैचैन रहते है और अपने डेली होरोस्कोप के जरिये जीवन में खोने-पाने का लेखा जोखा तैयार करते रहते हैं। पर हम ये भूल जाते हैं कि इस दुनिया में सबको सबकुछ नहीं मिलता।
दूर से देखने पर जो चीज़ें हमें अच्छी लगती हैं पास जाने पर पता चलता है कि उनकी वास्तविकता ही कुछ और है। इस दुनिया में किसी के पास पैसा है और परिवार नहीं, परिवार है तो प्यार नहीं ,और प्यार है तो स्वास्थ्य नहीं । ऊपर वाले ने हम में से हर एक की  जिंदगी में कुछ न कुछ कमी दी है। सर्वगुणसम्पन्न यहाँ कोई भी नहीं। तो जरूरत यह है कि जो हमारे पास है उसकी कीमत समझी जाये और जो नहीं है उसको पाने का प्रयास करते रहें। जो आपके भाग्य में है वो आपको खुदबखुद  मिल ही जायेगा और जो खुशियां आपके हिस्से में नहीं आने वाली हैं वो लाख कोशिशों के बावजूद भी नहीं मिलेंगी। तो फिर फ़िक्र किस बात की।
रोबिन शर्मा की  किताब 'द मोंक हू सोल्ड हिज़ फरारी' जीवन की  इसी बात की  तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करती है कि सब कुछ पाकर भी कुछ पाने कि तलाश ताउम्र ज़ारी रहती है। और अक्सर ऐसा होता है कि  कुछ पाने कि दौड़ में कुछ ऐसा पीछे छूट जाता है जिसकी भरपाई करना मुश्किल होता है।
इस किताब में एक ऐसे आदमी का ज़िक्र है जिसके पास पैसा, पावर, सफलता सबकुछ होता है लेकिन फिर अचानक एक दिन हार्टअटैक आने पर वह खुद को मौत के बहुत करीब पाता है। और उसे अहसास होता है कि सफलता और उपलब्धियों को पाने कि दौड़  में उसने जीवन का बहुत बड़ा भाग यूँ ही व्यर्थ कर दिया।
उसने पैसा तो कमाया लेकिन उस पैसे से उसे ख़ुशी नहीं मिली उल्टा उसने अपनी सेहत गँवा दी और वक़्त से पहले ही खुद को मौत के सामने खड़ा पाया। और फिर एक दिन वो अपना सब कुछ छोड़ कर हिमालय की श्रंखलाओं में फिर से एक नए जीवन कि खोज में निकल पड़ता है।
 तो कहानी का सार यही है कि जीवन की  उपलब्धि उसे सही प्रकार से जीने में है लेकिन जीवन जीने की  कला को जान लेना हर किसी के बस कि बात नही  है। वो तो विरले ही होते हैं जो इस सत्य को समझें हैं कि जीवन का उद्देश्य आखिर है क्या? सारी  जद्दोजहद के बाद अगर आप अंदर से खुश हैं तो सब ठीक है वर्ना सब कुछ बेकार है क्योंकि खुश रहने के लिए सबकुछ होना जरूरी नहीं होता यह तो  हमारे सोचने पर निर्भर करता है | कभी हमारे पास कुछ नहीं होता फिर भी हम बेहद खुश होते हैं और कभी सब कुछ मिल जाने पर भी कहीं कुछ कमीं लगती है। लेकिन शायद इसी का नाम  जिंदगी है।