शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

'सितारों से आगे जहाँ और भी हैं'

परालौकिक विषयों पर बहुत खोज की गई है और बहुत से दावे भी किये जा चुके है। लेकिन मृत्यु के बाद मनुष्य कहाँ जाता है ,आत्मा कहाँ विचरण करती है ये आज भी हम सब के लिए कौतहूल का विषय है। क्या जीवन के उपरांत भी कोई संसार है? जहाँ वास्तव में हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का निर्धारण होता है या ये सब महज कोरी कल्पनायें हैं? इस सन्दर्भ में जो भी हमे ज्ञात है वो हमारे धर्मग्रंथों से मिला हुआ ज्ञान है। आदि गुरुशंकराचार्य द्वारा लिखित निर्वाणषट्कम् में अद्वैत वेदांत के विषय में जो छह श्लोक दिए गए हैं उनमें भी यही चित्रित किया गया है। लेकिन इसके विषय में अभी तक कोई भी वैज्ञानिक तथ्य प्राप्त नहीं हुआ है कि मृत्यु के उपरांत भी कोई जीवन है या नहीं।
भगवत गीता में भी यही कहा गया है कि मृत्यु के बाद हमारी आत्मा इस शरीर का त्याग कर देती है और फिर दूसरा शरीर धारण कर लेती है। और तब उसकी पूर्व जन्म की स्मृति का विलोप हो जाता है। मेरे अनुमान से ऐसा ही कुछ इस्लाम और ईसाई धर्मग्रंथों में भी माना गया है। लेकिन  का अभाव होने के कारण मानव मन में यदा कदा कुछ प्रश्न उठते रहते है।
 बहुत से लोगो ने कहा है कि उन्होंने आत्माओं से साक्षात्कार किया है। कुछ लोग जिन्होंने मृत्यतुल्य बीमार होने के बाद दुबारा जीवित होने का दावा किया ,उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी आत्मा को शरीर से बाहर जाते और फिर लौट कर वापिस आते हुए देखा है। वे आत्मा के रूप में किसी दूसरे संसार में गए और वहां से उन्हें वापिस भेज दिया गया। लेकिन इन साक्ष्यों पर लोग अधिक विश्वास नहीं करते हैं।
इस बात का दूसरा पहलू यह भी है कि हम जो आए दिन अख़बारों में पढ़ते है कि फलां गाँव में एक बच्चे ने अपने पूर्व जन्म के परिवारजनो को पहचान लिया और उनके बारे में सब कुछ सही-सही बतला दिया। लेकिन खोजकर्ताओं को इसमें भी संदेह है। खेर जो भी हो हमारे हिन्दू धर्म में आत्मा और पुनर्जन्म की अवधारणा को बहुत ही गंभीरता से लिया जाता है। जैसे श्राद्धपक्ष, पिंडदान और मृत्योपरांत किये जाने वाले कर्मकांड । यह सब मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए ही कराये जाते है। और ऐसा मन जाता है की इन्हें ना करने पर उस व्यक्ति की आत्मा भटकती रहती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है।
आजकल कुछ टेलीविज़न चैनलों पर भी इस प्रकार के प्रोग्राम दिखाए जाते है जिनमे लोगो को उनकी अवचेतन  अवस्था में पहुंचा कर उनकी आत्मा से प्रश्नो का उत्तर जाना जाता है। रहस्यों भरे इस विषय में अभी तक सही मायनों में पूरी तरह संतुष्ट कर देने वाला कोई तर्क प्रस्तुत नहीं किया गया है। हम सब  धर्म वक्ताओं और धार्मिक ग्रंथों में लिखी हुई बातों पर विश्वास किये जा रहे हैं।  और जहाँ प्रमाण और साक्ष्य प्रस्तुत करने की बात उठती है वहाँ मौन या निरुत्तर हो जाते हैं.। शोध के अभाव में यह विषय आज भी अनछुआ रह गया है। इस रोचक और जिज्ञासा भरे विषय में अभी बहुत रिसर्च करने की जरूरत है। लेकिन लगता नहीं कि मानव की कल्पनाओं की भी पहुँच से परे इस संसार को कभी कोई भी जान पाएगा।

शनिवार, 22 नवंबर 2014

कहते हैं की प्रकति हमसे बातें करती है। कभी कोई मौसम ,कोई फ़िज़ा किसी पल में आकर खुद हमसे कहती हैं की आओ देखो कितनी सुंदरता भरी हुई हैं तुम्हारे चारों तरफ़। थोड़ा वक़्त तो निकालो प्रकति से वार्तालाप के लिये। अक्टूबर हमेशा से ही इतना खूबसूरत रहा है, मुझे आज भी याद है सालों  पहले भी मैं अक्टूबर की शामों को इतना ही पसंद करती थी । पता नहीं कब इस खूबसूरत महीने ने मुझे बताया की हाँ यही है वो मौसम जो मेरा पसंदीदा है। यही है वो वक़्त जब मेरा दिल कवितायेँ लिखना चाहता है, अपने सबसे पसंदीदा रंगो के कपडे पहन कर इठलाना चाहता है और चेहरे पर महसूस करना चाहता है इस गुलाबी हवा को। वक़्त बदलता है पर वो कुछ चीज़ें नहीं जो हमें हमेशा से पसंद होती हैं बिलकुल वैसे ही जैसे अक्टूबर की ये खूबसूरत शाम।
रिश्ते पौधों की तरह होते हैं इन्हें समय-समय पर  र्स्नेह, धैर्य और त्याग से सींचना पड़ता है। लेकिन मैं ये भी मानती हूँ की रिश्तों में यदि सत्यता है तो वे स्वयं ही निभते चले जायेंगे लेकिन यदि जहाँ ईर्ष्या , अहं और गुस्से ने वहां घर बना लिया तो उस स्थिति में रिश्ते मात्र एक औपचारिकता बन कर रह जाते हैं। हमारे साथ अक्सर ऐसा होता है कि जिन रिश्तों के पीछे हमने अपना सारा जीवन निकल दिया होता है वे ही स्वार्थवश अंत में हमसे विश्वासघात कर बैठते हैं। तो क्या किया जाये उन रिश्तो से मुंह मोड़  लिया जाये या उन्हें माफ़ करके जीवन को आगे बढ़ाया जाये। पर दिल पर लगी हुई  चोटें  क्या सहज ही भुला दीं  जा सकती हैं। हमारे अपने जिन से हम निश्छल, निःस्वार्थ ,प्रेमपूर्ण  व्यव्हार की अपेक्षा करतें हैं उनके ही मुंह से कहे हुए कड़वे शब्द क्या आसानी से भुलाये जा सकते है? शायद नहीं।  जगजीत सिंह की ग़ज़ल का एक शेर है "गाँठ अगर लग जाये तो फिर रिश्ते हों या डोरी, लाख करें कोशिश खुलने की वक़्त तो लगता है"।