सोमवार, 28 अगस्त 2017

ऐशो आराम और भोग विलासिता का जीवन जीने वाले और शिष्याओ से घिरे रहने वाले बाबाओं में मुझे कभी श्रद्धा नहीं रही लेकिन धार्मिक हूँ और योग और आध्यात्म में मेरा विश्वास है तो पूर्णतः सात्विक जीवन जीने वाले संत महात्माओं में अपनी आस्थाओं से मैं इनकार नहीं करती. मैं अपनी दादी माँ के साथ अक्सर वृंदावन जाती थी जहाँ बहुत से संत महात्माओं के दर्शन हुए...बहुतों के बारे में दादी से सुना करती थी...वैराग्य के कई रूप देखे...लेकिन इनसे बहुत ऊपर हैं एक योगी। दरअसल उन्हें ‘महायोगी’ कहकर बुलाया जाता था वो देवरहा बाबा थे... दादी की देवरहा बाबा में अपार आस्था थी तो कौतहूलवश मैं भी उनके विषय में जानने को सदा उत्सुक रहती...कहते हैं उनकी आयु 200 वर्ष से भी ज्यादा की थी। दुनिया के कोने-कोने से महान एवं प्रसिद्ध लोग उनके दर्शन करने आते थे। उनके चेहरे पर एक अलग किस्म की चमक थी और लोगों का यह तक मानना था कि देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी। जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे।
बाबा देवरहा 1990 में चल बसे। बाबा मथुरा में यमुना के किनारे रहा करते थे। यमुना किनारे लकडिय़ों की बनी एक मचान उनका स्थाई बैठक स्थान था। बाबा इसी मचान पर बैठकर ध्यान, योग किया करते थे। भक्तों को दर्शन और उनसे संवाद भी यहीं से होता था। देवरहा बाबा ने जीवनभर अन्न ग्रहण नहीं किया। वे यमुना का पानी पीते थे अथवा दूध, शहद और श्रीफल के रस का सेवन करते थे। तो क्या इसका मतलब उन्हें भूख नहीं लगती थी। इस प्रश्न का जवाब कई वैज्ञानिक अध्ययनों में मिलता है। एक अध्ययन के अनुसार अगर कोई व्यक्ति ब्रह्माण्ड की ऊर्जा से शरीर के लिए आवश्यक एनर्जी प्राप्त कर ले और उसे भूख ना लगे यह संभव है।
साथ ही अगर कोई व्यक्ति ध्यान क्रिया करे और उसकी लाइफस्टाइल संयत और संतुलित हो तो भी लम्बे जीवन की अपार संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त आयु बढ़ाने के लिए किए जाने वाली योग क्रियाएं करे, तो भी लम्बा जीवन सपना नहीं। हालांकि अध्ययन के अनुसार इन तीनों चीजों का एक साथ होना आवश्यक है। बाबा के पास इस तरह की कई और सिद्धियां भी थी। इनमें से एक और सिद्धी थी पानी के अंदर बिना सांस लिए आधे घंटे तक रहने की। इन सिद्ध महापुरुष,संत और महान आत्मा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम जिन्होंने जन मानस को त्याग और सहिष्णुता के माध्यम से आध्यात्मिक मार्ग पर चलने को प्रेरित किया।
पिता ने रिपोर्ट कार्ड देखा बच्चे के कुछ विषय में नंबर कम आए थे पिता ने तड़ाक... एक जोरदार चाँटा मारा बेटे को....झन्नाटेदार चाँटे से लड़का सकपका कर रह गया ...जब तक कुछ समझ पाता तब तक पिता ने एक और चाँटा मारा ...लड़के का कान लाल हो गया ....पिता टीचर से उसकी शिकायतें सुनकर और भी लाल पीला हो गया ....टीचर बताती जा रही थी कि पिछले कुछ समय से बच्चा अजीब व्यवहार कर रहा था और उसकी वजह से क्लास मै डिस्टर्बेंस होता है। मेरी नज़र अब भी उस बच्चे के चहरे पर छपी उसकेे पिता की उंगलियों पर थी। मैं अधीर हो उठी मुझसे यह दृश्य देखा नहीं गया मैं उस बच्चे की मानसिक स्थिति और उसके कष्ट को देखकर परेशान हो गई ..संयोग से टीचर समझदार और सुलझी हुई थी ..मैं अनावश्यक रूप से मामले में कूद पड़ी और टीचर तथा उस बच्चे के पिता दोनों से इस बारे में बात करने लगी ..पिता समझने को तैयार नहीं था बच्चे को लेकर बाहर चला गया तब मैंनें टीचर से आग्रह किया कि वह कृपया उस बच्चे के विषय में थोड़ी नरमी से काम लें क्योंकि वह बच्चा पहले ही एक बेहद असंयमित और क्रूर स्वभाव के पिता के हाथों प्रताड़ित किया जा रहा है ..बातों ही बातों में टीचर ने बताया कि वह बच्चा एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी में बहुत अच्छा है और गाना भी बहुत अच्छा गाता है जिसके लिए उसे स्कूल में कई बार पुरस्कार भी मिल चुके हैं लेकिन यह उस बच्चे के पिता के लिए कोई बड़ी उपलब्धि नहीं थी उसे बस बच्चे को दुनिया के साथ चलने के लिए एक अच्छे नंबर वाला रिजल्ट कार्ड चाहिए था ... घर आकर भी मैं काफी व्यथित रही मेरे सामने बार बार बच्चे का चेहरा घूमता रहा ..खैर यह तो केवल टेस्ट का रिजल्ट था, एग्जाम अभी होने थे ..अब की बार जब मैं एग्जाम का रिजल्ट लेने स्कूल पहुंची तो बच्चा नहीं आया था बच्चे के पिता उसका मेडिकल जमा करा रहे थे मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि उस बच्चे के पांव में फ्रैक्चर हो गया और वह एग्जाम ही नहीं दे पाया है ..मैं हैरान रह गई अब मेरी बारी थी उनसे बात करने की मैंने उनसे पूछा भाई साहब आप बुरा मत मानिएगा लेकिन बताइए आप ने बच्चे को इतना मारा पीटा उस पर इतना दबाव डाला लेकिन क्या फायदा हुआ ... आपका बच्चा बेहद टैलेंटेड है आपको उसके साथ नरमी से पेश आना चाहिए था थोड़ी सी काउंसलिंग और गाइडेंस के साथ वह बहुत अच्छा परफॉर्म कर सकता है ..उसका टाइम टेबल बना दे कठिन विषयों में उसे गाइड करें ...हर बच्चे का आई क्यू लेवल अलग-अलग होता है उसे उसी प्रकार हैंडल करना चाहिए बच्चे पर अपनी अपेक्षाएं लादने से पहले यह भी देखना चाहिए कि वह उन्हें पूरी कर पाने में सक्षम है या नहीं ....बच्चे के साथ जो एक्सीडेंट हुआ उसकेे द्वारा शायद प़ॄकति भी आपसे यही कहना चाहती है.... हो सकता है आप मारपीट के द्वारा पढ़ा कर एक अच्छी नौकरी दिला दें लेकिन एक बार यदि आपने अपने बच्चे के साथ पिता पुत्र के संवेदनशील रिश्ते को खो दिया तो फिर आप कभी अपने बच्चे के साथ जुड़ नहीं पाएंगे... उस दिन आपने अपने 10 -12 बारह वर्ष के बच्चे के साथ जो व्यवहार किया यकीन मानिए बड़े होने पर बच्चा उस व्यवहार को कभी भूल नहीं पाएगा कि कैसे उसके दोस्तों और टीचर के सामने आपने उसके साथ मारपीट की उसके कोमल मन से ये यादें कभी मिट नहीं पाएंगीं ..अब जितने दिन आपका बच्चा बेड रेस्ट पर है उसके साथ दोस्ताना व्यवहार कीजिए और उसे समझने की कोशिश कीजिए..अब वह व्यक्ति शायद अपने किए पर शर्मिंदां था..मैं अक्सर इस तरह के माता-पिता को देखती हूं जो बच्चों पर पढ़ाई के लिए दबाव डालते हैं और बच्चे को मानसिक रूप से बेहद कष्ट से गुजरना पड़ता है ...ये अभी हाल ही की घटना है .. आज इस घटना का जिक्र मैंनें इसीलिए किया क्यूँ कि पिछले कई रोज से जिस छोटी बच्ची की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही थी फाइनली उसका पता चल गया कि वह तोषी की भांजी है... वीडियो में बच्चे की माँ उसको बड़ी निर्दयता के साथ पढ़ा रही है और बच्ची रोए जा रही है वीडियो देखने के बाद हर कोई उस माँ के प्रति अपना गुस्सा व्यक्त कर रहा था ..जाहिर तौर पर उस महिला का अपने बच्चे के प्रति व्यवहार असंयमित और आक्रोश से भरा हुआ था ... आखिर ऐसी क्या वजह थी कि इतनी छोटी बच्ची को उसकी मां पढ़ाई के लिए इतना दबाव डाल रही थी कि वह अपना संयम खो बैठी ...समझ नहीं आता किसका दोष है उस माँ का... या हमारे एजुकेशन सिस्टम का ...जिसने ऐसी व्यवस्था निर्मित की है कि जहां बच्चों के सफल होने का मापदंड मात्र केवल उनके रिपोर्ट कार्ड को माना जाता है ... ऐसा केवल इस वीडियो में नहीं बल्कि आए दिन देखने में आ रहा है ... हमारा एजुकेशन सिस्टम केवल अच्छा परीक्षाफल लाने की एक प्रक्रिया को बढ़ावा देता है.. बच्चे के मानसिक विकास के लिए उसे परिवार और स्कूल की ओर से भावनात्मक सुरक्षा की भी जरूरत होती है हर बच्चे का आईक्यू एक सा नहीं होता लेकिन आप उससे बेहतर परफॉर्म करवाने का प्रयास करते रहे लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद बच्चा अच्छा परफॉर्म नहीं कर पा रहा है तो उसकी समस्या का किसी और तरह से हल निकालने की कोशिश करनी चाहिए.. विदेशों में बिहेवरियल थेरेपी का प्रयोग किया जाता है जिसमें बच्चे को कठिन लगने वाले विषय पर अधिक ध्यान देकर उसे सरल तरीके से सीखनें के तरीके बताए जाते हैं... किताबों के अलावा अन्य माध्यमों से विषय समझाने की कोशिश की जाती है.. खामियां हमारे एजुकेशन सिस्टम में ही हैं अति महत्वकांक्षी माता पिता बच्चे को जीनियस बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं बेचारे बच्चे करें तो क्या करें ...!!!

मंगलवार, 8 अगस्त 2017


दो अलग अलग पोस्ट पढ़ने में आईं आज... दोनों ही महानगरों में जीवन की असुरक्षा और संवेदनशून्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाती हुई.... पहली खबर चंडीगढ़ में एक युवती को कुछ युवको की कार के द्वारा पीछा किए जाने की थी , और दूसरी मुंबई में एक अस्सी वर्ष की वृद्ध महिला के अकेले में बेहद विचलित कर देने वाली स्थिति में मृत पाए जाने की थी ... दोनों ही खबरों को पढ़ कर में सोच में पढ़ गई .... हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं जहाँ जीवन सुरक्षित नहीं , सड़को पर चलने में भी भय और असुरक्षा का सामना करना पड़े ... और एक वृद्ध महिला एक मकान में अकेली दम तोड़ दे लेकिन कोई वहाँ आकर उसका हाल पूछने वाला न हो..... हम केवल अपने लिए जी रहे हैं ...इच्छाएं , महत्वकांछाएं   .. अपने परिवार तक सीमित , बस किसी तरह खुद को आगे ले जाने की कशमकश...  ये चंडीगढ़ जैसे महानगरों की स्थिति मुझसे अधिक कौन जानेगा, पाँच साल अकेले गुजारे हैं वहाँ, सफाई और ग्लैमर , चमक धमक को एक तरफ करके मानवता की बात की जाए तो बहुत ही निचले पायदान पर पाएगें इन महानगरों को। ये जो वर्णिका नाम की युवती है जिसका कुछ लड़कों ने चंडीगढ़ में कार से पीछा किया और फिर पुलिस की मदद से वह सुरक्षित घर पहुँच पाई..... एक बहुत ही आम घटना है .. बड़े छोटे सभी शहरों में लड़कियां आए दिन इस तरह की घटनाओ का सामना करती हैं ... लेकिन मै अब इस खबर पर पोस्ट इसलिए लिख रही हूँ कि मैं सुबह से कई लोगों को उस लड़की के चरित्र पर टिप्पणी करते पा रही हूँ... वास्तविकता जो भी हो....यह लड़की तो केवल एक उदहारण है... लड़कियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं... ये बात और है कि जितना उस लड़की के चरित्र के बारे में लिखा जा रहा है उतना उन युवकों के बारे में लिखा जाता तो शायद भविष्य में इस तरह के प्रभावशाली घरो के बिगड़े हुए शोहदों को कुछ सीख मिलती.... आमतौर पर हर लड़की इस तरह की घटना का कभी न कभी शिकार होती है .. विशेष रूप से रात के समय लड़कियों का सड़को पर सुरक्षित आना जाना किसी भी हालत में हमारे देश में संभव नहीं ...मैंने खुद चंडीगढ़ प्रवास के दौरान इस तरह की एक घटना को देखा है .. चंडीगढ़ के बेहद पॉश इलाके में जहाँ हमारा घर था उससे थोड़ी ही दूर पर एक महिला जयपुर से आए हुए एक नवविवाहित दंपत्ति रहते थे। पति टेलीकॉम कम्पनी में थे और पत्नी हाउसवाइफ ... वो अक्सर मुझे मिलती थी और  मेरी उससे अच्छी दोस्ती हो गयी थी.. एक रोज़ करीब आठ बजे वह लड़की सब्जी आदि खरीद कर वापिस आ रही थी कि एक कार उसका पीछा करने लगी.. लड़की सड़क के किनारे चलती हुई आती रही लेकिन मार्किट से हमारी कॉलोनी तक उस कार ने लड़की का पीछा करना जारी रखा ... हमारा घर आते ही वह गेट के अंदर आ गई ... थोड़ी देर बाद वो कार चली गई..  और मेरी सहेली भी अपने घर वापिस लौट गई ...                                                                                                                      वहीँ दूसरी घटना है जिसमें  मुंबई में एक वृद्धा को अपने शानदार फ्लैट में कंकाल के रूप में मृत पाया गया ... बेटा विदेश में और यहाँ कब से माँ मृत अवस्था में फ्लैट में बंद थीं .. क्या कोई इतने दिन तक उस वृद्ध महिला से मिलने नहीं आया होगा .. कोई परिचित, रिश्तेदार, कोई भी नहीं...  ये किस तरह का जीवन है ... जहाँ किसी को किसी के लिए समय नहीं ... अजीब दौड़ है... .जाने कितने ही ऐसे बुजुर्ग लोगो को देखती हूँ .. बेटा उच्च पद पर नौकरी करता है, हर महीने माता पिता को पैसे भेजता है , बैंक अकाउन्ट भरे पड़े हैँ और दिल भावनाओं से खाली .... यही प्रगति है उस बेटे के लिए , खैर मैनें सालों पहले एक पोस्ट की थी जिसमें एक बेहद दर्दनाक अनुभव से सामना हुआ था मेरा, यह महज संयोग है कि ये घटना भी मेरे चंडीगढ़ प्रवास के दिनों की है.... मैं चंडीगढ़ पहुँच कर नए घर में शिफ्ट ही हुई थी कि एक रोज़ कुछ दूर एक मकान से मुझे एक महिला के जोर जोर से रोने की आवाज़ आई ... मैं नई जगह होने के कारण असमंजस में थी। ... काफी देर तक जब उस मकान के आसपास के घरों से कोई मदद के लिए नहीं निकला तो मुझसे रहा नहीं गया ... मैं वहाँ गई, अब काफी और लोग भी वहां आ चुके थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी ... उनके बेटे ने खुद को कमरे में बंद कर के आत्महत्या कर ली थी .... अजीब शहर हैं ये सारे ,संवेदनाएं मृत हैं .... हम घरों से निकलना नहीं चाहते ... निकलते हैं भी तो एक आवरण के पीछे खुद को छुपाये फिरते है... उसी आवरण के पीछे एक दिन इस दुनिया से विदा ले लेते हैं .... मनुष्य से मनुष्य का रिश्ता इतना पेचीदा क्यों है,समझ नहीं आता