- "हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे ,कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयां औऱ !"
यूँ ही लोकल अख़बार के पन्ने पलटते हुए पढ़ा कि मेरे घर के पीछे की गली में स्थित ग़ालिब की हवेली यानि इंद्रभान गर्ल्स इंटर कॉलेज में मिर्ज़ा ग़ालिब की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। और फिर पता चला कि चचा तो अपने पडोसी निकले। हमारी नज़रों में उनसे बढ़ कर कोई लिखने वाला नहीं और हमसे बढ़ कर कोई पढ़ने वाला नहीं। मैं लगभग उछल पड़ी ,मिर्ज़ा ग़ालिब मेरे पीछे कि गली में? और मैं दुनियाभर कि किताबों में उनको ढूंढ़ती फिर रही थी । कॉलेज के ज़माने में कैसेटों और किताबों में ,और अब पूरा गूगल छान मारा है कि मरने से पहले ग़ालिब कि कोई भी नज़्म बिना पढ़े न रह जाये। वो ठहरे शायरी के देवता और हम पुजारी। हार्डकोर फेन कसम से।
तो थोडा बहुत रिसर्च करने पर पता चला कि इनका मूल निवास आगरा ही था , मेरा घर यानि कि बेलनगंज के पीछे एक पुराना मोहल्ला है- काला महल ,वहीँ पर एक मकान हुआ करता था जो अब एक कन्या विद्यालय में बदल दिया गया है। तो मियां मिर्ज़ा ग़ालिब यानि नज़्म-उद -दुल्लाह मिर्ज़ा असदुल्लाह बैग़ खां का जन्म इसी हवेली में हुआ था। उनका जीवनकल 27 दिसम्बर 1797 से 15 फ़रवरी 1869 तक रहा। ये वो वक़्त था जब मुगलों का शासनकाल अपने पतन पर था और ब्रिटिशों ने हिंदुस्तान में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी। जब वे ५ वर्ष के थे तो उनके पिता अलवर के युद्ध में मारे गए थे। उनका पालन-पोषण उनके चचा मिर्ज़ा नसरुल्लाह बैग खां ने किया था। उन्होंने ११ वर्ष कि उम्र में लिखना शुरू किया। १३ साल कि उम्र में उनका निकाह उमराव बेगम से हुआ था। जिनसे उनके सात संताने हुई लेकिन दुर्भाग्यवश एक भी जीवित नहीं बची।
उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सी ग़ज़लें ऑर नज़में लिखी जिन्हें बहुत से अलग -अलग लोगो ने अलग-अलग अंदाज में प्रस्तुत किया। मुग़ल दरबार में वे अपनी शायरी के लिए मशहूर थे। ग़ालिब को न केवल भारत और पाकिस्तान में बल्कि दुनिया के बहुत से उर्दू पढ़े जाने वाले मुल्कों में उर्दू का सर्वोच्च शायर माना जाता है। उनकी शायरी ज्यादातर जिंदगी के रंजोग़म का आईना थीं , लेकिन उनमें प्रेम, अध्यात्म और दर्शन का भी मिला जुला रूप देखने को मिलता है। वे उर्दू, फ़ारसी और तुर्की भाषाओँ पर सामान अधिकार रखते थे लेकिन उनकी रचनाएं सिर्फ उर्दू में ही देखने को मिलती हैं। ग़ालिब को उर्दू का पहला दानीश्वर शायर कहा जाता है। दीवान-ए -ग़ालिब को आज भी उर्दू शायरी में एक खास स्थान प्राप्त है।
Mirza Ghalib |
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