रविवार, 24 जून 2012


आज से एहसासों की खिड़कियाँ खुली रखना,
रात आँगन में जब चाँद आये ,
 चांदनी घर के चौबरों में आके भर जाये,
नींद को धीरे से अलविदा कहना,
बेठना चुपके से छत  के कोने पे जाके  ,
क्या पता तब वहां कोई तारा ,
तुम्हारी झोली में आके गिर जाये।

आज से एहसासों की खिड़कियाँ खुली रखना,
अब के सावन में जब बारिश आए ,
पानी -पानी सा सब नज़र आये ,
ठंडी फुहारों को जाया न होने देना ,
नन्ही बूंदों को  जमीं पे मत गिरने देना,
निकल पड़ना यूँही गीली हुई सडको पे ,
यूँ ही बस खुद को भीगने देना,
 दिल पे जमी  हुई धूल की परतें ,
क्या पता अब के बारिश में धुल जाये।




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