आज से एहसासों की खिड़कियाँ खुली रखना,
रात आँगन में जब चाँद आये ,
चांदनी घर के चौबरों में आके भर जाये,
नींद को धीरे से अलविदा कहना,
बेठना चुपके से छत के कोने पे जाके ,
क्या पता तब वहां कोई तारा ,
तुम्हारी झोली में आके गिर जाये।
आज से एहसासों की खिड़कियाँ खुली रखना,
अब के सावन में जब बारिश आए ,
पानी -पानी सा सब नज़र आये ,
ठंडी फुहारों को जाया न होने देना ,
नन्ही बूंदों को जमीं पे मत गिरने देना,
निकल पड़ना यूँही गीली हुई सडको पे ,
यूँ ही बस खुद को भीगने देना,
दिल पे जमी हुई धूल की परतें ,
क्या पता अब के बारिश में धुल जाये।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें