अब के हम बिछड़े तो शायद फिर ख़्वाबों में मिले।...... क्या हमने कभी सोचा था कि ये बात गलत साबित हो जाएगी। अब वो जमाना नहीं रहा कि प्यार करने वाले लोग एक बार बिछड़ते थे तो फिर कभी नहीं मिल
पाते थे। फेसबुक और ऑरकुट जैसी साइट्स ने हमारे जीवन से विरह रस को तो जैसे स्टीम इंजन की तरह से बिलकुल ही ख़तम कर दिया है। आज बेशक आपके चाहने वाले इन्सान की शादी हो जाये, वो सात समुन्दर पार चला जाये, लेकिन फिर भी आप घर बेठे देख सकते हैं कि उसने अपने बेटे की 10वी सालगिरह पर किस तरह का केक बनवाया था, या हर साल वो छुट्टियों में कहाँ होलीडे मानाने जाता है।अब दिलों के पुराने जख्म भरने लगें हैं। बहुत फर्क आ गया है 20 साल पहले और आज की दुनियां में ,विज्ञानं तरक्की कर रहा है, और उसके साथ लोगो की सोच में और उनके जीवन के प्रति नज़रिए में भी बदलाव आता जा रहा है। अब दूरियां कम हो गयी है, लोग एकदूसरे से हर वक़्त संपर्क में रहते हैं। प्रेम के विषय में बात करें तो मुझे लगता है, जब से इन्टरनेट ने हमारे जीवन में जगह बनाई है तब से विरह रस पर गीत और कविता लिखने वाले लोगो के लिए तो कुछ बचा ही नहीं। वर्ना प्रियतम की याद में तरसती हुई नायिका पर गीत लिखना लेखकों की पहली पसंद हुआ करता था । आज जहाँ सेकेंडो में एक दूसरे तक सन्देश पहुंचाया जा सकता है, वहीँ पहले चिट्ठी लिख कर भेजने के हजारों तरीके हुआ करते थे। कभी कबूतर के द्वारा अपनी बात अपने प्रिय तक पहुंचाना , या कभी चाँद, बादल या हवा से कहना कि वो प्रियतम तक उसके दिल की बात पहुँच दे। और जब दूर देश से किसी के लिए कोई पत्र आता था तो उस आनंद की अनुभूति का तो क्या ही कहना। क्या हमारी आने वाली पीढियाँ उस आनंद का कभी अनुभव कर पाएंगी। एक छोटे से कागज पर अपनी भावनाओं को सुन्दर शब्दों में पिरो कर जब अपने किसी प्रिय तक पहुँचाया जाता था तो केवल समाचारों का आदान-प्रदान नहीं होता था ,बल्कि एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओ की सुन्दर अभिव्यक्ति की जाती थी। आज जब विज्ञानं प्रगति कर रहा है तो संपर्क के माध्यम तो बढ़ रहे हैं लेकिन शब्द कम होते जा रहे हैं। भावनाओं का आदान प्रदान इतना सरल हो गया है कि उनका महत्त्व ही कम हो गया है। संबंधो में औपचारिकता कम होती जा रही है और वर्चुअल फ्रेंड्शिप का चलन बड़ता जा रहा है। लेकिन ये वर्चुअल फ्रेंड्स केवल उस वर्चुअल संसार तक ही सीमित रहते है। उससे बाहर निकलते ही हम फिर संबंधो को पहले की तरह से जीने लगते हैं।