रविवार, 21 अक्तूबर 2012









माँ,
जब भी मैं तुम्हारी प्रतिमा को देखती हूँ तो ,
एक प्रश्न उठता है मन में,
तुम शक्ति का स्वरूप हो ,
खडग,त्रिशूल, गदा धारण किये,
सिंह पर सवार  हो,
पुरुष तुम्हारे आगे शीश झुकाते हैं,
लेकिन तुम्हारी ही जैसी तुम्हारी बेटियाँ
फिर क्यों इतनी कमजोर हैं,
दबी हुई ,डरी हुई ,
पुरुषों के आधीन  रह कर ,
जीवन जीने को  मजबूर,
हर रोजतुम्हारी कितनी ही बेटियाँ,
 दबी हुई  चीखों
और सिसकियों के साथ,
चली जाती हैं संसार से,
और जाने कितनी  रह जाती हैं अजन्मी
माँ की कोख में ही,
तुम माँ हो ,
तो क्यों नहीं देख पाती ,
 हमारी पीड़ा हमारा दुःख,
क्यों बनाया है तुमने हमें ,
इतना निर्बल इतना विवश ,,
कब करोगी माँ,
हमारी प्रार्थना स्वीकार ,
कब  दोगी हम सब को
अपनी शक्ति का थोड़ा-थोड़ा  अंश,
इस पुरुष प्रधान संसार में
जीवन जीने का अधिकार।






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