सोमवार, 9 दिसंबर 2013

ये पता नहीं मौसम का असर होता है या आपके अपने  ही दिमाग में होने वाले साइकोलॉजिकल प्लस बाईलॉजिकल चेंजस  का असर , जिससे आपकी दिनचर्या प्रभावित होती रहती है। कभी बहुत नींद आती है बेहिसाब, इतनी कि रात में पूरी नींद ले लेने के बावजूद भी दिन भर सोये रहने का मन करता है | और कभी ऐसा भी होता है की नींद आपसे कोसो दूर भाग जाती है । ऐसा लगता है कि सुबह जल्दी उठ कर अपने सारे काम निपटा लिया जायें । सोना तो जैसे टाइम की बर्बादी लगता है। कभी सबसे बात करने का दिल करता है और कभी किसी से भी नहीं। और कभी -कभी तो ऐसा लगता है जैसे आप एक ऐसे शहर में हैं जहाँ कोई और जबान बोली जाती है। आप किसी से बात करेंगे तब भी कोई आप  की बात नहीं समझ नहीं पाएगा। ये एकाकीपन क्या मेरे ही साथ होता है या सभी इसका अनुभव करते हैं। समझ नहीं आता कि क्या है ये खालीपन सा जो भीड़ में जाने के बाद और बढ़ जाता है। 

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