मंगलवार, 8 अगस्त 2017


दो अलग अलग पोस्ट पढ़ने में आईं आज... दोनों ही महानगरों में जीवन की असुरक्षा और संवेदनशून्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाती हुई.... पहली खबर चंडीगढ़ में एक युवती को कुछ युवको की कार के द्वारा पीछा किए जाने की थी , और दूसरी मुंबई में एक अस्सी वर्ष की वृद्ध महिला के अकेले में बेहद विचलित कर देने वाली स्थिति में मृत पाए जाने की थी ... दोनों ही खबरों को पढ़ कर में सोच में पढ़ गई .... हम किस तरह के समाज में रह रहे हैं जहाँ जीवन सुरक्षित नहीं , सड़को पर चलने में भी भय और असुरक्षा का सामना करना पड़े ... और एक वृद्ध महिला एक मकान में अकेली दम तोड़ दे लेकिन कोई वहाँ आकर उसका हाल पूछने वाला न हो..... हम केवल अपने लिए जी रहे हैं ...इच्छाएं , महत्वकांछाएं   .. अपने परिवार तक सीमित , बस किसी तरह खुद को आगे ले जाने की कशमकश...  ये चंडीगढ़ जैसे महानगरों की स्थिति मुझसे अधिक कौन जानेगा, पाँच साल अकेले गुजारे हैं वहाँ, सफाई और ग्लैमर , चमक धमक को एक तरफ करके मानवता की बात की जाए तो बहुत ही निचले पायदान पर पाएगें इन महानगरों को। ये जो वर्णिका नाम की युवती है जिसका कुछ लड़कों ने चंडीगढ़ में कार से पीछा किया और फिर पुलिस की मदद से वह सुरक्षित घर पहुँच पाई..... एक बहुत ही आम घटना है .. बड़े छोटे सभी शहरों में लड़कियां आए दिन इस तरह की घटनाओ का सामना करती हैं ... लेकिन मै अब इस खबर पर पोस्ट इसलिए लिख रही हूँ कि मैं सुबह से कई लोगों को उस लड़की के चरित्र पर टिप्पणी करते पा रही हूँ... वास्तविकता जो भी हो....यह लड़की तो केवल एक उदहारण है... लड़कियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं... ये बात और है कि जितना उस लड़की के चरित्र के बारे में लिखा जा रहा है उतना उन युवकों के बारे में लिखा जाता तो शायद भविष्य में इस तरह के प्रभावशाली घरो के बिगड़े हुए शोहदों को कुछ सीख मिलती.... आमतौर पर हर लड़की इस तरह की घटना का कभी न कभी शिकार होती है .. विशेष रूप से रात के समय लड़कियों का सड़को पर सुरक्षित आना जाना किसी भी हालत में हमारे देश में संभव नहीं ...मैंने खुद चंडीगढ़ प्रवास के दौरान इस तरह की एक घटना को देखा है .. चंडीगढ़ के बेहद पॉश इलाके में जहाँ हमारा घर था उससे थोड़ी ही दूर पर एक महिला जयपुर से आए हुए एक नवविवाहित दंपत्ति रहते थे। पति टेलीकॉम कम्पनी में थे और पत्नी हाउसवाइफ ... वो अक्सर मुझे मिलती थी और  मेरी उससे अच्छी दोस्ती हो गयी थी.. एक रोज़ करीब आठ बजे वह लड़की सब्जी आदि खरीद कर वापिस आ रही थी कि एक कार उसका पीछा करने लगी.. लड़की सड़क के किनारे चलती हुई आती रही लेकिन मार्किट से हमारी कॉलोनी तक उस कार ने लड़की का पीछा करना जारी रखा ... हमारा घर आते ही वह गेट के अंदर आ गई ... थोड़ी देर बाद वो कार चली गई..  और मेरी सहेली भी अपने घर वापिस लौट गई ...                                                                                                                      वहीँ दूसरी घटना है जिसमें  मुंबई में एक वृद्धा को अपने शानदार फ्लैट में कंकाल के रूप में मृत पाया गया ... बेटा विदेश में और यहाँ कब से माँ मृत अवस्था में फ्लैट में बंद थीं .. क्या कोई इतने दिन तक उस वृद्ध महिला से मिलने नहीं आया होगा .. कोई परिचित, रिश्तेदार, कोई भी नहीं...  ये किस तरह का जीवन है ... जहाँ किसी को किसी के लिए समय नहीं ... अजीब दौड़ है... .जाने कितने ही ऐसे बुजुर्ग लोगो को देखती हूँ .. बेटा उच्च पद पर नौकरी करता है, हर महीने माता पिता को पैसे भेजता है , बैंक अकाउन्ट भरे पड़े हैँ और दिल भावनाओं से खाली .... यही प्रगति है उस बेटे के लिए , खैर मैनें सालों पहले एक पोस्ट की थी जिसमें एक बेहद दर्दनाक अनुभव से सामना हुआ था मेरा, यह महज संयोग है कि ये घटना भी मेरे चंडीगढ़ प्रवास के दिनों की है.... मैं चंडीगढ़ पहुँच कर नए घर में शिफ्ट ही हुई थी कि एक रोज़ कुछ दूर एक मकान से मुझे एक महिला के जोर जोर से रोने की आवाज़ आई ... मैं नई जगह होने के कारण असमंजस में थी। ... काफी देर तक जब उस मकान के आसपास के घरों से कोई मदद के लिए नहीं निकला तो मुझसे रहा नहीं गया ... मैं वहाँ गई, अब काफी और लोग भी वहां आ चुके थे, लेकिन तब तक बहुत देर हो गई थी ... उनके बेटे ने खुद को कमरे में बंद कर के आत्महत्या कर ली थी .... अजीब शहर हैं ये सारे ,संवेदनाएं मृत हैं .... हम घरों से निकलना नहीं चाहते ... निकलते हैं भी तो एक आवरण के पीछे खुद को छुपाये फिरते है... उसी आवरण के पीछे एक दिन इस दुनिया से विदा ले लेते हैं .... मनुष्य से मनुष्य का रिश्ता इतना पेचीदा क्यों है,समझ नहीं आता  



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