शनिवार, 10 जनवरी 2015

हम जीवन को तरीकों से जीते हैं..... पहला तरीका है भ्रम में जीने का और दूसरा तरीका है वास्तविकता में जीने का … यदि मनुष्य भ्रम में जीता है तो वह माया है और यदि वास्तविकता में जीता है तो वह सन्यासी है.…  दोनों ही परिस्थितियों में हम दासता का जीवन जीते हैं … यहाँ ये समझना अनिवार्य हो जाता है कि दोनों ही परिस्थितियों में हम बाध्य होते हैं दास बनने को फिर चाहें भ्रम के हों या वास्तविकता के …तो मनुष्य की जो मूल मानसिक अवस्था है वह दास बने रहने की है … वह चाहे स्वयं को स्वामी समझे लेकिन वास्तव में तो वह दास ही होता है..... जब उसके पास परिवार होता है तो वह अपनी पत्नि, बच्चों और परिवारजनो का दास होता है … देश का राष्ट्रपति भी भले ही देश का उच्चतम व्यक्ति माना जाता हो लेकिन वास्तव में तो वह भी दास ही होता है... हम सब दास हैं अपने विचारों के, अपनी नियत जीवन शैली के …ज्ञान इसी दासता से हमें मुक्त करता है …वह न सिर्फ हमारे विचारों को मुक्त करता है बल्कि हमारे वास्तविक स्वरुप से भी हमारा साक्षात्कार कराता है …

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