शुक्रवार, 13 मार्च 2015


वह बहुत तेज़ी से ऑल इंडिया मेडिकल की सीडियां चढ़ रही थी ...उसकी गोद में उसका 7 -8 साल का बेटा  था ... उसका पल्लू पकड़े हुए पीछे पीछे उसकी 5 साल कि बेटी चल रही थी ...जो किसी भी सूरत में अपनी माँ से अलग नहीं रहना चाहती थी ...यह पहली बार नहीं था जब ये लोग देश के इस जाने माने अस्पताल में आए थे ...हर छह महीने बाद इन लोगो को यहाँ आना होता था ... २ साल कि उम्र में बुखार आने पर उसके बेटे के पैर में पोलिओ हो गया था ...अपने स्वस्थ बच्चे को अचानक अपंग होते देख कर कौन सी माँ अपना धेर्य नहीं खोएगी ....उस पर भी घरवालों का ये ताना कि उसकी ही लापरवाही से ये सब हुआ है ...काफी इलाज के बावजूद भी जब बच्चे के पैर में कोई सुधार नहीं हुआ तो बच्चे को दिल्ली ले जाकर इलाज करने का निर्णय लिया गया ...वहां अस्पताल में जब वह पोलियो से ग्रस्त अन्य बच्चों को देखती तो उसका दिल रो पड़ता ...उसे लगता कहीं उसका बेटा जीवन भर के लिए अपंग न हो जाये ...बच्चे का एक पैर अपनी चलने की शक्ति खो चुका था ...वह भगवान से प्रार्थना करती, ‘ हे ईश्वर , आप मेरे पैरों कि शक्ति मेरे बेटे के पैरों में डाल दो , चाहों तो मुझे अपंग कर दो लेकिन मेरे बेटे को पूरी तरह स्वस्थ कर दो ‘....वह यूँही बार बार बार बच्चे को लेकर दिल्ली आती और डॉक्टरों से उसका चेकअप कराती ...डोक्टरों ने सुझाव दिया कि सही खानपान , मालिश और चमड़े के बने हुए खांचे में पैर को रख कर चलने से शायद कुछ फर्क आ जाये ...बस वह बच्चे की देख रेख में जुट गई ...वह दिन रात बच्चे का ख्याल रखती और भगवान से उसके ठीक होने की प्रार्थना करती .... यूँ तो उसके दो बड़े बेटे और एक छोटी बेटी भी थी लेकिन उसका ध्यान पूरी तरह उस बीमार बच्चे में ही लगा रहता ... अन्य बच्चे दादा –दादी कि देख रेख में रहते ...धीरे धीरे बच्चा बड़ा होने लगा और उसके पैर में सुधार आने लगा ...वह फिर भी संतुष्ट नहीं थी ...वह अपने बेटे को पूरी तरह ठीक करना चाहती थी ...वह उसे सामान्य बच्चों की तरह दौड़ते – भागते देखना चाहती थी ....तब किसी ने उन्हें बताया कि तमिलनाडु के कोयाम्बत्टूर शहरमें एक जगह है जहाँ इस बीमारी का इलाज किया जाता है ...वह अपने पति और बेटे को लेकर वहां चली गई ...वह एक बड़ा आयुर्वेदिक चिकित्सालय था जहाँ विशेष प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइयों और तेलों की  मालिश से उस बच्चे का इलाज किया जाता था ...वह अपने बेटे को लेकर कई बार वहां गई ...आखिरकार भगवन ने उसकी प्रार्थना सुनी अब बच्चा ठीक से चलने फिरने लगा था ... हालाँकि उसके पैर में अभी थोड़ी कमजोरी रह गई थी ...लेकिन अब वह बिना किसी मदद के स्कूल जाने लगा था ...वह अब बहुत खुश थी ....आखिरकार उसकी मेहनत रंग लाई थी ....समय का चक्र चलता जा रहा था बेटा अब 14 -15 वर्ष का हो गया था .....वह हमेशा की तरह घर के सदस्यों कि देखभाल करती रहती थी ... सास ससुर की  देखभाल , पति का और बच्चो का ख्याल रखना यही उसका जीवन था ...लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था ...उसने ईश्वर से अपने बेटे के ठीक होने के बदले जो माँगा था वही हुआ ...एक रात अचानक जब वह सो रही थी और नींद खुलने पर जब उसने अपने पैरों पर खड़ा होने चाहा तो उसका बायां पैर अचानक लड़खड़ा गया ...सहारा लेने के लिए जैसे ही उसने अपना बायाँ हाथ बढाया तो उसने पाया कि वह भी अशक्त हो चुका था ...उसके शरीर का बायां भाग लकवे का शिकार हो गया था ...वह सदा के लिए अपंग हो गई थी ....लेकिन उसे ईश्वर से कोई शिकायत नहीं थी वह खुश थी क्यूंकि उसका बेटा अब अपने पैरों पर चलने लगा था ... दौड़ने भागने लगा था ...उसकी तपस्या का फल उसको मिल गया था ...वह केवल एक माँ थी और कुछ भी नहीं ....

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