शुक्रवार, 22 जून 2012


आज सुबह-सुबह किसी म्यूजिक चैनल पर एक गाना चल रहा था।
 कुछ जाने - पहचाने  से शब्द सुनाई दिए, पतिदेव ऑफिस जाने की जल्दी में थे, और मैं नाश्ते की तैयारी में लगी हुई  थी। काम में व्यस्त होने पर भी सुनाई दिया -तुम्ही हो बंधू ,सखा तुम्ही हो.....
एकदम रौक म्यूजिक स्टाइल में, याद  आया  ये लाइन तो मैं पहले भी सुन चुकी हूँ, कोकटेल  फिल्म का गाना है। पुराना  भजन तुम्ही हो माता ,पिता तुम्ही हो।....... रिडीकुलस.....  इसका भी यूज  कर लिया इन म्यूजिक कम्पोसर्स ने। क्या  बालीवुड  में अच्छे रायटर्स  का अकाल पड़  गया है जो इन पुरानी मंदिरों और स्कूलों में बजने वाली प्रार्थनाओं को कोकटेल जैसी फिल्मों में यूज  कर रहे हैं। कितना सुरीला भजन था ये जिसमें भक्त भगवान से कह रहा है कि तुम्ही मेरे माता -पिता, बंधू और सखा हो। कैसे भूल जाऊं  मै  शायद ये उन सबसे पहले भजनों में से एक है, जो मेरी माँ  ने मुझे और मेरे भाइयों को सिखाये  थे।गर्मियों के दिनों में , शाम के वक़्त आँगन  में बैठ  कर हम सब इस भजन को गुनगुनाते थे। और आज इसका ये मोडर्न  वर्जन  देख कर और सुन  कर सर चकरा सा गया है,।भले ही धुन बदल दी जाये लेकिन कोरियोग्राफी  उफ़ क्या कहूं। आखिर क्या सूझा उस म्यूजिक  कम्पोजर को जो इतने सुन्दर भजन की इन पंक्तियों को तोड़-मरोड़  कर अपने किसी गीत का मुखड़ा बना डाला ।इन्सटेंट  म्यूजिक... एकदम नूडल्स की तरह, कोई मेहनत न करनी पड़े ,थोड़ा इधर से लिया थोड़ा उधर से और हो गया।
ऐसा ही एक और गीत सुना था अभी कुछ दिनों पहले। जो एक बहुत पुराने दोहे पर आधारित था।
रोकस्टार फिल्म का "कागा रे कागा रे मेरी इतनी अरज तोसे चुन चुन खइयो मांस, खइयो न दो नैना , पिया के मिलन की आस। इसे तो पिछले साल शायद कई अवार्ड भी मिले थे। मै तो शायद इतनी पुरानी  पंक्तियों को कभी पढ  भी न पाती , अगर मैने घर के  एक पुराने संदूक में से अपनी दादी के लिखे हुए कुछ पत्र न देखे  होते । बड़ी ही सुन्दर लिखाई  में मेरे दादाजी के नाम लिखे हुए इन पत्रों में मेरी दादी ने कई दोहे, छंदो और मुहावरों का प्रयोग किया था।जिसमें से एक ये था जिसे दुबारा मैंने  फिर रोकस्टार  में सुना।.......कागा सब तन खाइयो ....... थोड़े से फेरबदल के साथ। इस गीत का म्यूजिक तो खैर फिर भी कर्ण प्रिय था।इसके आगे की पंक्तियों से मेल खाता हुआ जो कुछ इस तरह से थी....नादाँ परिंदे घर आजा ......सो मेने कई बार सुना भी और ईमानदारी से बताऊँ तो इंजॉय भी किया। पंक्तियों का सुर ताल से थोडा बहुत मेल था। पर तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही .......ये पंक्तियाँ  तो जैसे  इस गाने  के साथ जबरदस्ती से एडजस्ट करी गयीं थीं  । दिल ख़राब सा हो गया। पर इतने शोर के बीच भी उस पुरानी धुन में वो गाना फिर मेरे दिमाग में बजने लगा ........तुम्ही हो माता- पिता तुम्ही हो ...........




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