शनिवार, 10 जनवरी 2015

आग में तप कर ही सोना निखरता है। कहने को तो बहुत साधारण सी कहावत है लेकिन इसका मर्म समझे तो पता चलेगा कि यह कितना सत्य है। जीवन तब तक बहुत सरल लगता है जब तक हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिए किसी और पर निर्भर होते हैं। लेकिन जीवन की वास्तविकता तब सामने आती है जब हम अपने कम्फर्ट लेवल से निकल कर खुद को प्रूव करने के प्रयास करने लगते हैं। बिना प्रयास करे ही यदि सब कुछ मिल जाये इससे अच्छा और क्या। लेकिन उस अवस्था में हम स्वयं से अपरिचित होते हैं। अपनी सही क्षमताओं का आकलन तो हम तभी कर पाते हैं जब हम कठिन समय से गुज़रते हैं। ठीक उसी वक़्त जब सभी अपने साथ छोड़ देते हैं और हमारे सामने जीवन एक चुनौती बन कर खड़ा हो जाता है। ऐसी अवस्था में कुछ लोग तो हिम्मत हार जाते है और कुछ लोग अपनी पूरी सामर्थ्य को बटोर कर परिस्थितियों से डट कर सामना करते हैं। यही वो वक़्त है जब हम अपने वास्तविक स्वरूपको पहचान पाते हैं और हमारा साक्षात्कार  हमारे व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलुओं से होता है । यदि इस समय हम पूरी ऊर्जा और उत्साह से स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूूल ढाल लेते हैं तो निश्चित रूप से हम कठिन से कठिन समय को भी आसानी से गुजार देते हैं। और हमारा जीवन ठीक उसी तरह संवर जाता है जैसे आग में तप कर सोना निखर जाता है। 

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