सोमवार, 18 जुलाई 2016

माँ कहती हैं गुरू बिन ज्ञान नहीं। हमारे यहाँ यह परम्परा है कि जीवन तभी सार्थक होगा जब किसी को गुरु माना जाए। मेरे घर में भी सभी गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत सा सामान लेकर अपने गुरूजी की पूजा अर्चना करने जाते हैं। यही गुरु फिर हमें जीवन भर राह दिखाते हैं। तो शादी के कुछ सालों बाद मुझे भी लगने लगा कि मेरे जीवन में गुरु का होना जरूरी है और तलाश शुरू हुई मेरे गुरु की। एक तो मैं आसानी से किसी से प्रभावित होती नहीं। धर्म के मामले मे मेरा अपना अलग ही नजरिया है जो औरों से मेल नहीं खाता। तो बहुत ढूँढने पर भी मुझे कोई गुरु नहीं मिल पाये। बचपन से ही हमारे घर में बहुत से संत महात्माओं का आवागमन लगा रहता था लेकिन किसी के भी प्रति मन में श्रद्धा का भाव आ पाये ऐसा कभी नहीं हुआ। संत महात्मा मुझे मुझसे भी ज्यादा सांसारिक लगे। शादी के बाद भी ससुराल में भी अनेक संत महात्माओं का आना जाना लगा रहता था।लेकिन मन में गुरु की जो खोज थी वो ज्यों की त्यों रही।इसी बीच कई ज्ञानी व्यक्तिों से संपर्क हुआ।लेकिन मेरे दिमाग में मेरे गुरू की जो छवि थी उससे मेल खा सके ऐसा कोई महानव्यक्तित्व मुझे आज तक नहीं मिला। किताबें ही मेरा मार्गदर्शन करती रहीं तो मैं खुद ही बिना किसी गुरु के अपने अंतर्मन की आवाज को सुनकर जीवन की ऊहापोह में अपना मार्ग ढूंढती रही। लेकिन गुरु की खोज तो करनी ही है। तब तक के लिए मैं उन शुभचिंतकों और मित्रों की ही अपना आज का दिन समर्पित करती हूँ जो मेरी मुश्किलों में मेरा मार्गदर्शन करते हैं।

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