सोमवार, 7 नवंबर 2016

ना पूरी तरह सांसारिक,
ना पूरी तरह वैरागी ,
मैं संतुलन की खोज में हूँ ,
खुद को खोजती हूँ तो,
 जीवन से दूर हो जाती हूँ,
और जीवन को ढूंढती हूँ तो ,
खुद को भूल जाती हूँ ,
फिर थक कर प्रश्न करती हूँ ,
जीवन का उद्देश्य क्या है
उत्तर की प्रतीक्षा में
यहाँ वहां जाती हूँ ,
सत्य वह है तो यह क्या  है ,
जीवन भ्रम है ,
ये जान कर घबराती हूँ,
जीवन क्या बस एक जिज्ञासा है ?





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