एक रिश्ता था जो टूट गया ,
क्योंकि उस रिश्ते में सब कुछ था ,
बस प्रेम नहीं था ,
शिकवे थे ,शिकायतें थीं,झगड़े थे
बस प्रेम नहीं था ,
मैं फिर भी ,
रेगिस्तान के सूखे हुए पौधे जैसे ,
उस रिश्ते को ,
अपनी कोशिशों की बारिश से सींचती रही ,
और फिर धीरे -धीरे ,
मैं खुद रेगिस्तान हो गई ,
उस रिश्ते के चारों तरफ,
नुकीले ,तेज़ धारवाले , कांटे उग आये थे ,
जो मेरे जिस्म को ही नही,
मेरी रूह को भी छलनी कर रहे थे ,
और फिर एक दिन ,
मैंने उस रिश्ते को जड़ से उखाड़ फेंका ,
जड़ें ज्यादा गहरी नहीं थीं ,
रह गई तो बस एक फांस ,
जो अब ताउम्र चुभती रहेगी कलेजे में ,
लेकिन ये उन कांटों से कहीं बेहतर है ,
जो रोज़ मुझे छलनी करते थे,
अब वो रिश्ता नहीं है ,लेकिन सुकून है ,
क्योंकि उस रिश्ते में
सब कुछ था बस प्रेम नहीं था।
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