शनिवार, 26 नवंबर 2016


हम आप अक्सर ये जुमला बोलते हैं और सुनते हैं 'क्या लड़कियों की तरह रो रहा है ' , 'लड़कियों की तरह क्यों झगड़ रहे हो'.....  मैं समानता में विश्वास रखती हूँ लेकिन कभी कभी स्त्रीवादी मुद्दों पर पोस्ट करती हूँ।  फिर भी मुझे ऐसे वाक्य नहीं सुहाते जो महिलाओं को कमजोर ,अबला , बेचारी साबित करते हैं। स्त्री पुरुष में असमानता, मायके का बिछोह , सामाजिक भेदभाव , ये कुछ बातें हैं जिनका महिलाओं को न चाह कर भी सामना करना पड़ता है लेकिन जहाँ पुरुषों के महिलाओं से तुलना करने की बात आती है ऐसी बातें सुन कर मैं  बुरी तरह चिढ जाती हूँ , मैंने हमेशा कहा है कि अपने स्वाभाविक कोमल और संवेदनशील रूप में रह कर ही स्त्री हर परिस्थिति का सामना कर सकती है। त्याग , सहनशीलता ,धैर्य, ये महिलाओं के वो गुण हैं जो पुरूषों से अधिक महिलाओं में पाए जाते हैं ,दर्द सहन करने की क्षमता को देखें तो विज्ञानं भी यह साबित कर चूका है कि महिलाएं पुरुषों से कहीं अधिक दर्द सहन कर पाती हैं , और कार्यक्षेत्र में होने वाले प्रेशर को भी महिलाएं अधिक सकारात्मक तरीके से मैनेज करती हैं ....... उसके बाद भी ये जुमला कि देखो कैसे लड़कियों की तरह रो रहा है , या लड़कियों की तरह लड़ रहा है तो अजीब लगता है , हम सब यही सुनकर बड़े हुए हैं , हमारे समाज में मैं ऐसे जुमलों का बोले जाना ये बताता है कि लड़की होना आपको एक कमजोर योद्धा साबित करता  है , या फिर रोना धोना केवल और केवल लड़कियों का ही विशेष गुण है ,और तो  और महिलाएं भी यही सोचने लग जाती हैं कि समानता किसी भी गणीतीय आकलन से असंभव है ,और ये असमानता नज़र आती है कार्यक्षेत्र में ,घर से बाहर जाकर पढाई या नौकरी करने में।  क्या ये नहीं हो सकता कि हम "देखो लड़की की तरह रो रहा है "या देखो  लड़की की तरह झगड़ा कर रहा है" इसे सकारात्मक तरीके से देखें। और ये माने कि किसी भी पुरुष की महिलाओं से तुलना उसे और अधिक मजबूत और अधिक बेहतर दिखाता है।  मैं तो चाहूँगी कि हम इसे प्रशंसा के तौर पर लें क्योंकि स्त्री होना अपने आप मैं एक गर्व का विषय है , शर्म का नहीं।

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