मंगलवार, 23 दिसंबर 2014

क्यों आते हैं ऐसे मौसम जो जिंदगी में उदासी सी भर जाते हैं। मुझे यूँ तो सर्दियाँ भाती हैं लेकिन सिर्फ अक्टूबर की गुलाबी सर्दियाँ। ऐसी एक्सट्रीम ठण्ड नहीं कि जिसमें उँगलियाँ सुन्न हो जाती हैं। धमनियों में खून जमने लगता है। कितने ऊब भरे हैं आलस्य से भरे हुए ये दिन। मुझे वो हर मौसम ख़राब लगता है जो दिल में उदासी भरता है। एक खालीपन जो डराता है, दिल बैठने लगता है। शायद क्यूंकि मुझे प्यार है जिंदगी से। मुझे हर उस चीज़ से प्रेम है जो निरंतर चलती रहती है। ये कोहरे की चादर जो सब जगह छा जाती है मुझे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती। मैं फूलों को मुरझाते हुए नहीं देख सकती। मैं पेड़ों को सूखते हुए नहीं देख सकती। मुझे खुली धूप में उनका खिलना अच्छा लगता है, बारिश में उनका भीगना भी। लेकिन यूँ सर्दियों में उनका मुरझाना मुझे उदास करता है। लोग घरोंमें कैद हो जाते हैं। यात्राएँ स्थगित हो जाती हैं। मुसाफिर अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाते। सड़क के किनारे अलाव जलाये बैठे लोग कैसे सामना करते हैं रात भर ठंडी हवाओं का। मेरे लिए बेशक ये मौसम है फ़िल्टर कॉफ़ी का, चॉक्लेट पेस्ट्री का , कुल्हड़ वाली चाय का और हीटर के आगे रज़ाई में ऊंघते रह कर मूंगफली की गज़क खाने का। लेकिन फिर जब सुबह अख़बार में कोहरे की वजह से होने वाले हादसों के बारे में पढ़ती हूँ तो दिल बैठने सा लगता है। चिढ़ होने लगती है इस बेरहम मौसम से। और मेरी कोई दुश्मनी नहीं है इस सर्द मौसम से।
वैसे कभी मुझे भी इश्क़ था दिसंबर के महीने से। लेकिन अब वो गुज़रे ज़माने की बात हो चुकी है। अब यादें धुंधली हो गयीं है। ब्लोअर के आगे बाल सुखाने का वो एहसास, वो सफ़ेद सूट पर हलके हरे रंग का पश्मीना शाल। वो कॉफी से निकलती हुई भाप। तब मुझे जाड़ों में भी सर्दी कहाँ लगती थी। बहुत लुत्फ़ लिया करती थी मैं इस मौसम का। और आज कोई मुझसे रज़ाई से बाहर कदम रखने को कह दे तो वो मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है। 

1 टिप्पणी:

  1. समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है ... कई बार तो यादें भी साथ छोड़ देती हैं ...

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