शनिवार, 27 दिसंबर 2014

मैं हमेशा से ही भाग्यवादी रही हूँ। मेरा मानना है कि जीवन में जो भी घटित होता है वह पूर्वनिर्धारित होता है। फिर उसे हम किसी भी सूरत में परिवर्तित नहीं कर सकते। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि ईश्वर में अपने अटूट विश्वास के कारण मुझे लगता है कि कोई भी मनुष्य उसके कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। यही कारण रहा है कि ज्योतिष या किसी और तरीके से भाग्य बदलने का दावा करने वाले व्यक्तियों पर सहजता से विश्वास नहीं कर पाती। लेकिन साथ ही मैं ये मानती हूँ कि प्रार्थनाओं में बहुत शक्ति होती है। और यदि वास्तव में संसार में ऐसे लोग हैं जो किसी के भी भाग्य को बदल सकते हैं तो अभी तक ऐसे किसी व्यक्ति से मेरा साक्षात्कार ही नहीं हो पाया है। ख़ैर जो भी हो ये मेरी व्यक्तिगत सोच है कि मैं किसी भी कार्य को इसलिए नहीं कर सकती कि उसमें मेरा कुछ भला हो। हाँ अपने मनमौजी स्वभाव के चलते स्वयं की ख़ुशी और संतुष्टि के लिए मैं वह काम ख़ुशी-ख़ुशी कर सकती हूँ। सब दिल की उमंग पर निर्भर करता है।  यदि कोई मुझसे कहे कि मैं गाय को भोजन खिलाऊँ या चीटियों को आटा खिलाऊँ तो मेरा भाग्योदय होगा तो शायद आत्मग्लानि के चलते ऐसा कर ही नहीं पाऊँगी। बस ये ही विचार आएगा कि ऐसा मैंने अपने किसी स्वार्थवश किया। और नाही मेरे अंदर वो संतुष्टि का भाव आएगा कि मैंने कोई नेक कार्य किया है। हाँ जैसा कि मैंने पहले कहा कि दिल की आवाज के चलते यदि किसी के लिए कुछ किया तो मन ख़ुशी से झूम उठेगा। बस यही वजह है कि सबको अपनी तरक्की और खुशहाली के लिए बहुत से नेक कार्य करते देख कर भी उसमें कुछ नेकी नहीं ढूंढ पाती हूँ। और यही लगता है कि वह काम दूसरे की भलाई के लिए नहीं बल्कि अपनी भलाई की मंशा से किया जा रहा है। अपने मोहल्ले के टॉमी, भूरा और कालू के लिए हम अक्सर पार्टी कर देते हैं लेकिन भाग्योदय की इच्छा से उन्हें रेगुलर बेसिस पर रोटी खिलाएं ये हमसे नहीं हो पता। अपनी बालकनी पर आकर बैठने वाले बंदरों के लिए कुछ न कुछ रख देना हमारी आदत है ,लेकिन संकटों से मुक्ति के लिए उन्हें स्पेशल ट्रीटमेंट देना संभव नहीं हो पता। फिर ये तो सेल्फिशनेस होगी न। फिर भी अपना -अपना विश्वास है। पंडितजी ने बताया है तो सच ही होगा। अब हमारी समझ में नहीं आ रहा है तो कमी हम में ही होगी। :) :)

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