रविवार, 15 जनवरी 2017

मई के महीने की इस चिलचिलाती गर्मी में एक जगह ऐसी भी है जहाँ आप हमेशा असीम शीतलता महसूस करेंगे , बाँके बिहारी का प्रांगण …खस खस  और केवड़े की खुशबू वाले फव्वारे और बेला के फूलों की तेज़ खुशबू... मन को मोह लेने वाला वातावरण ....गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू होते ही और मई के महीने के आखिर में पड़ने  वाली पहली बारिश की फुहार … खुदबखुद हम वहां की तरफ चल देते थे… हमारी  उस जगह से जुड़ाव की एक और वजह थी कि मंदिर से दो कदम की दूरी पर ही हमारी ननिहाल थी…जब दोपहर में सब सो जाते थे तो मैं और मेरे मामा की बेटी चुपके से बाहर निकल आते। आस पास के प्राचीन मंदिरों में जाने क्या ढूँढ़ते फिरते थे … और फिर अपने ठिकाने पर पहुँच जाते थे… कुछ देर उस दुर्लभ आकर्षण वाले श्याम सलोने को निहारते फिर पूरे मंदिर का चक्कर लगाते …उन दिनों मंदिर की सेवा का कार्य गोसाईं होने के कारण हमारे ही रिश्तेदारों को मिला हुआ था… सो मंदिर के ऊपरी मंजिल के कमरों में भी दौड़भाग मचाया करते थे …मैं और मेरी बहन गले में बेला और गुलाब के फूलों की माला और माथे पर गोपीचंदन लगाये हुए गोपी बने घूमा करते …उस ज़माने में शाम को संध्या आरती के लिए पट खुलने के समय सफ़ेद तांत की सारी पहने बहुत सी बंगालन भी दिखा करती थीं … जो अब  काफी समय से नजर  नहीं आतीं…लेकिन हमारी ननिहाल में खाना बनाने से लेकर कुएं से पानी भरने आदि कार्य यह बंगालन ही करती थीं.…इनकी खासबात यह थी कि अगर गलती से भी हम इन्हें छू भर लेते थे तो ये गुस्से में कांपती हुई बांग्ला में गाली देती थीं … वृन्दावन में उस समय हर घर में एक कुंआ होता था , मैं बहन के साथ जिस के भी घर जाती पहले वहां कुआँ देखती थी … बहुत डर लगता था मुझे कुओं से … एक और जगह थी जहाँ मुझे डर लगता था और वो था नानी का पूजाघर …वहां हमारा जाना मना था …वो एक बाहर बड़ा सा हॉल था.…जिसमें हलकी रौशनी रहती थी.…जहां बड़ी बड़ी अष्टधातु की राधा कृष्ण की मूर्तियां थीं.… प्राणप्रतिष्ठित उन मूर्तियों की सेवा पूजा बड़े नियम से होती थी....पहले लोरी गाकर उन्हें जगाया जाता , फिर स्नान और श्रंगार होता फिर नज़र उतरी जाती और माखन मिश्री और मेवे का भोग  लगाया जाता … मैं इस सारी  प्रक्रिया को  चौखट पर बैठे ध्यान से देखा करती....मेरी बहन ने जब से मुझे बताया था कि पट बंद होते ही ये सारी मूर्तियां जीवित हो जाती हैं  मैं उनके पास नही जाती थीं... छुट्टियां ख़त्म होने पर भी मेरा वहां से आने का मन नही करता था … समय के साथ मेरा वहां जाना काम होता गया.… इधर मैं पढ़ाई में व्यस्त हो गई और नानी का भी देहांत हो गया …लेकिन आज भी गर्मियां होते ही मेरा मन करता है कि माँ के साथ वहां रहने जाऊं और उन यादों को दुबारा से जीउँ....

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