रविवार, 15 जनवरी 2017

मैंने ज्यादा साहित्य नहीं पढ़ा। जो कुछ भी घर में दादाजी या पिताजी की अलमारियों से उपलब्ध हो सका बस वहीँ तक पढ़ा है। जिसमें ज्यादातर आध्यात्मिक विषयों की किताबें थीं। तो मेरे बाल मन का उसी और झुकाव बढ़ गया। इसके अलावा घर में धार्मिक, किस्से-कहानियों की, हस्तरेखा , और चिकित्सीय विज्ञान जैसे विषयों पर किताबें भी पढ़ने को मिल जातीं थीं। इसमें मैं नंदन ,चम्पक और चाचा चौधरी जैसी कॉमिक्स बुकों को शामिल नहीं कर रही हूँ क्यूंकि उस वक़्त टीवी पर केवल एकमात्र चैनल दूरदर्शन आता था और बच्चो के मनोरंजन के लिए केवल कॉमिक्स ही हुआ करती थीं। और बाद में कॉलेज में आने पर खुद अपनी रूचि के हिसाब से किताबें खरीदने लगी और पढ़ने लगी। 

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